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पुनः॑ प्रा॒णः पुन॑रा॒त्मा न॒ ऐतु॒ पुन॒श्चक्षुः॒ पुन॒रसु॑र्न॒ ऐतु॑। वै॑श्वान॒रो नो॒ अद॑ब्धस्तनू॒पा अ॒न्तस्ति॑ष्ठाति दुरि॒तानि॒ विश्वा॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पुन: । प्राण:। पुन: । आत्मा । न: । आ । एतु । पुन: । चक्षु: । पुन: । असु: । न: । आ । एतु । वैश्वानर: । न: । अदब्ध: । तनूऽपा: । अन्त: । तिष्ठाति ।दु:ऽइतानि । विश्वा ॥५३.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:53» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

स्वास्थ्य की रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुनः) बार-बार (प्राणः) प्राण, (पुनः) बार-बार (आत्मा) आत्मबल (नः) हमें (ऐतु) प्राप्त हो, (पुनः) बार-बार (चक्षुः) देखने का सामर्थ्य, (पुनः) बार-बार (असुः) बुद्धि (नः) हमें (ऐतु) प्राप्त हो। (अदब्धः) बेचूक, (तनूपाः) शरीरों का रक्षक (वैश्वानरः) सब नरों का हितकारी परमात्मा (नः) हमारे (विश्वा) सब (दुरितानि) कष्टों के (अन्तः) बीच में (तिष्ठाति) स्थित रहे ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि सदा धर्म में प्रवृत्त रह कर परमेश्वर की आज्ञा पालन करें, जिससे विश्राम के पश्चात् और पुनर्जन्म में भी उत्तम शरीर और इन्द्रियाँ प्राप्त करके सुख भोगते रहें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−अ० ४। म० १५ ॥
टिप्पणी: २−(पुनः) वारं वारम्। विश्रामानन्तरं द्वितीये जन्मनि वा (प्राणः) जीवस्थितिहेतुः प्राणवायुः (पुनः) (आत्मा) आत्मबलम् (नः) अस्मान् (ऐतु) आगच्छतु। प्राप्नोतु (पुनः) (चक्षुः) दर्शनशक्तिः (पुनः) (असुः) प्रज्ञा−निघ० ३।९। (नः) (ऐतु) (वैश्वानरः) सर्वनरहितः परमेश्वरः (नः) अस्माकम् (तनूपाः) शरीरपालकः (अन्तः) मध्ये। अन्तरान्तरेणयुक्ते। पा० २।३।४। इति द्वितीया (तिष्ठाति) लेट्। तिष्ठेत् (दुरितानि) दुःखानि (विश्वा) सर्वाणि ॥