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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जैसे (उदकम्) जल को (अपपुषः) न पीनेवाले पुरुष का (आस्यम्) मुख (अपशुष्यति) सूख जाता है। (एव) वैसे ही (माम्) मुझ को (कामेन) अपने प्रेम से (नि) नित्य (शुष्य) सुखा (अथो) और तू भी (शुष्कास्या) सूखे मुखवाली होकर (चर) विचर ॥४॥
भावार्थभाषाः - जैसे अति प्यासे मनुष्य को जल की बड़ी चिन्ता रहती है, वैसे ही पति-पत्नी पूर्ण प्रीति से एक दूसरे का ध्यान रक्खें ॥४॥
टिप्पणी: ४−(यथा) येन प्रकारेण (उदकम्) जलम् (अपपुषः) पा पाने−लिटः क्वसुः। अपीतवतस्तृषितस्य पुरुषस्य (अपशुष्यति) शुष्कं भवति (आस्यम्) मुखम् (एव) एवम्। अन्यद्गतम्−म० २ ॥