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आहु॑तास्य॒भिहु॑त॒ ऋषी॑णाम॒स्यायु॑धम्। पूर्वा॑ व्र॒तस्य॑ प्राश्न॒ती वी॑र॒घ्नी भ॑व मेखले ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आऽहुता । असि । अभिऽहुता । ऋषीणाम् । असि । आयुधम् । पूर्वा । व्रतस्य । प्रऽअश्नती । वीरऽघ्नी । भव । मेखले ॥१३३.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:133» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मेखना बाँधने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (मेखले) हे मेखला ! तू (आहुता) यथाविधि दान की गई (असि) है, (ऋषीणाम्) धर्ममार्ग बतानेवाले ऋषियों का (आयुधम्) शस्त्ररूप (असि) है। (व्रतस्य) उत्तम व्रत वा नियम के (पूर्वा) पहिले (प्राश्नती) व्याप्त होनेवाली और (वीरघ्नी) वीरों को प्राप्त होनेवाली तू (भव) हो ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य नियमपूर्वक मेखला से कटि कस कर कर्म करते हैं, वे ही वीर होते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(आहुता) यथाविधि दत्ता (अभिहुता) सर्वतः स्वीकृता (ऋषीणाम्) अ० २।६।१। सन्मार्गदर्शकानाम् (असि) (आयुधम्) शस्त्ररूपा (पूर्वा) आद्या (व्रतस्य) अ० २।३०।२। श्रेष्ठकर्मणः (प्राश्नती) व्याप्नुवती (वीरघ्नी) हन गतौ−क्विप्। वीराणां हन्त्री गन्त्री (भव) (मेखले)−म० १। हे कटिबन्धन ॥