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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ऐश्वर्य प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रावरुणौ) प्राण और अपान वायु ने (अप्सु अन्तः) प्रजाओं के बीच (आध्या सह) ध्यान शक्ति के साथ (शोशुचानम्) अत्यन्त प्रकाशमान (यम् स्मरम्) जिस स्मरण सामर्थ्य को (असिञ्चताम्) सींचा है, (तम्) उस [स्मरण सामर्थ्य] को (ते) तेरे लिये (वरुणस्य) सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर के (धर्मणा) धर्म अर्थात् धारण सामर्थ्य से (तपामि) ऐश्वर्ययुक्त करता हूँ ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्राण और अपान के समान संसार में परस्पर उपकारी होकर ऐश्वर्य बढ़ावें ॥५॥
टिप्पणी: ५−(मित्रावरुणौ) अ० १।२०।२। प्राणापानौ। अन्यत् पूर्ववत् ॥