वांछित मन्त्र चुनें
देवता: स्मरः ऋषि: अथर्वा छन्द: अनुष्टुप् स्वर: स्मर सूक्त

उन्मा॑दयत मरुत॒ उद॑न्तरिक्ष मादय। अग्न॒ उन्मा॑दया॒ त्वम॒सौ मामनु॑ शोचतु ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत् । मादयत । मरुत: । उत् । अन्तरिक्ष । मादय । अग्ने । उत् । मादय । त्वम् । असौ । माम् । अनु । शोचतु ॥१३०.४॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:130» पर्यायः:0» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

स्मरण सामर्थ्य बढ़ाने का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (मरुतः) हे वायुगणो ! (उत्) उत्तम प्रकार से (मादयत) प्रसन्न करो, (अन्तरिक्ष) हे मध्यलोक ! (उत्) अच्छे प्रकार (मादय) हर्षित कर। (अग्ने) हे अग्नि ! (त्वम्) तू (उत्) उत्तम रीति से (मादय) आनन्दित कर, (असौ) वह [स्मरण सामर्थ्य] (माम्) मुझको (अनु) व्यापकर (शोचतु) शुद्ध रहे ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक प्राण अपान गति, जाठर अग्नि और बाहिर-भीतर स्थान को ठीक-ठीक रख कर स्वस्थ रहकर अपनी स्मृति बढ़ाते रहें ॥४॥
टिप्पणी: ४−(उत्) उत्तमतया (मादयत) हर्षयत (मरुतः) हे मरुद्गणाः। प्राणापानाः (उत्) (अन्तरिक्ष) मध्यलोक (मादय) आनन्दय (अग्ने) जाठराग्ने। अन्यद् गतम् ॥