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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
स्मरण सामर्थ्य बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यथा) जिससे (असौ) वह [स्मरण सामर्थ्य] (मे) मेरा (स्मरात्) स्मरण रक्खे, और (अहम्) मैं (कदा चन) कभी भी (अमुष्य) उसको (न) न [भूल करूँ]। (देवाः) हे विद्वानो ! (स्मरम्) उस स्मरण सामर्थ्य को (प्र) अच्छे प्रकार (हिणुत) बढ़ाओ, (असौ) वह [स्मरण सामर्थ्य] (माम् अनु) मुझ में व्यापकर (शोचतु) शुद्ध रहे ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य प्रयत्नपूर्वक समस्त विद्याओं को स्मरण रख कर उपयोगी बनावे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(यथा) येन प्रकारेण (मम) (स्मरात्) स्मरेत् (असौ) स्मरः (न) निषेधे (अमुष्य) स्मरस्य (अहम्) (कदा चन) कदापि [स्मरामि=स्मृणोमि] इत्यध्याहारः। स्मृ प्रीतिचलनयोः, स्वादिः। चलनं करोमि। अन्यत् पूर्ववत् ॥