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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
स्मरण सामर्थ्य बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (असौ) वह [स्मरण सामर्थ्य] (मे) मेरा (स्मरतात्) स्मरण रक्खे, (इति) बस यही, (प्रियः) वह प्यारा [सामर्थ्य] (मे) मेरा (स्मरतात्) चिन्तन करे, (इति) बस यही। (देवाः) हे विद्वानो ! (स्मरम्) उस स्मरण सामर्थ्य को... म० १ ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्याओं को स्मरण रख कर उपयोग करते हैं, वे ही संसार में प्रिय होते हैं ॥२॥
टिप्पणी: २−(असौ) स्मरः (मे) अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति षष्ठी। मम (स्मरतात्) स्मृ लोटि तातङ्। स्मरतु (इति) वाक्यसमाप्तौ (प्रियः) हितकरः। अन्यद्गतम् ॥