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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
स्मरण सामर्थ्य बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (रथजिताम्) रमणीय पदार्थों की जितानेवाली, और (राथजितेयीनाम्) और स्मरणीय पदार्थों के विजयी पुरुषों के समीप रहनेवाली (अप्सरसाम्) आकाश, जल, प्राण और प्रजाओं में व्यापक शक्तियों का (अयम्) यह जो (स्मरः) स्मरण सामर्थ्य है, (देवाः) हे विद्वानो ! (स्मरम्) उस स्मरण सामर्थ्य को (प्र) अच्छे प्रकार (हिणुत) बढ़ाओ, (असौ) वह [स्मरण सामर्थ्य] (माम् अनु) मुझ में व्यापकर (शोचतु) शुद्ध रहे ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों के सत्सङ्ग से विज्ञानपूर्वक संसार की उपकारी विद्याओं को स्मरण रखकर उपयोगी बनावें ॥१॥
टिप्पणी: १−(रथजिताम्) जि−क्विप्, अन्तर्गतणिच्। रमणीयानां पदार्थानां जापयित्रीणाम् (राथजितेयीनाम्) शुभ्रादिभ्यश्च। पा० ४।१।१२३। रथजित्−ढक्। अदूरभवश्च। पा० ४।२।७०। इत्यर्थे। रथजितां रमणीयपदार्थजेतॄणां समीपभवानाम् (अप्सरसाम्) अप्सु आकाशे, जले, प्राणेषु प्रजासु च सरणशीलानां शक्तीनाम् (अयम्) (स्मरः) स्मृ आध्याने चिन्तायां च−अप्। ध्यानसामर्थ्यम् (देवाः) हे विद्वांसः (प्र) प्रकर्षेण (हिणुत) हि गतौ वृद्धौ च। वर्धयत (स्मरम्) चिन्तनम् (असौ) स्मरः (माम्) ब्रह्मचारिणम् (अनु) व्याप्य (शोचतु) ईशुचिर् शौचे, छान्दसः शप्। शुच्यतु शुध्यतु ॥