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आ क्र॑न्दय॒ बल॒मोजो॑ न॒ आ धा॑ अ॒भि ष्टन दुरि॒ता बाध॑मानः। अप॑ सेध दुन्दुभे दु॒च्छुना॑मि॒त इन्द्र॑स्य मु॒ष्टिर॑सि वी॒डय॑स्व ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ । क्रन्दय । बलम् । ओज: । न: । आ । धा: । अभि । स्तन । दु:ऽइता । बाधमान: । अप । सेध । दुन्दुभे । दुच्छुनाम् । इत: । इन्द्रस्य । मुष्टि: । असि । वीडयस्व ॥१२६.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:126» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

राजा और सेना के कर्तव्यों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन् !] (बलम्) बल और (ओजः) पराक्रम (नः) हमें (आ धाः) अच्छे प्रकार दे, [शत्रुओं को] (आ क्रन्दय) सब ओर से .... और (दुरिता) कष्टों को (बाधमानः) हटाता हुआ (अभि) सब ओर (स्तन) मेघध्वनि कर। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभी [के समान गरजनेवाले !] (इतः) यहाँ से (दुच्छुनाम्) दुष्ट गति को (अप सेध) हटा दे, तू (इन्द्रस्य) बिजुली की (मुष्टिः) मूँठ [के समान दुष्टों को मारनेवाला] (असि) है, [राज्य को] (वीडयस्व) दृढ कर ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा बलवान् होकर यथावत् अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को जीतकर प्रजापालन करता है, वैसे ही मनुष्य आत्मदोष मिटा कर धर्मिष्ठ होवें ॥२॥
टिप्पणी: २−(आ) समन्तात् (क्रन्दय) रोदय शत्रून् (बलम्) (ओजः) पराक्रमम् (नः) अस्मभ्यम् (आ) (धा) धेहि (अभि) सर्वतः (स्तन) स्तन मेघशब्दे। मेघध्वनिं कुरु (दुरिता) कष्टानि (बाधमानः) निवारयन् (अप सेध) अपगमय (दुन्दुभे) दुन्दुभिरिव शब्दायमान (दुच्छुनाम्) अ० ५।१७।४। दुर्गतिम् (इतः) अस्माद् देशात् (इन्द्रस्य) विद्युतः (मुष्टिः) मुष्टिरिव दुष्टानां हन्ता (असि) (वीडयस्व) बलयस्व राज्यम् ॥