राजा और सेना के कर्तव्यों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे राजन्] (पृथिवीम्) भूमि वा अन्तरिक्ष को (उत) और (द्याम्) सूर्य वा बिजुली में (उप) उपयोग के साथ (श्वासय) जीवन डाल, (पुरुत्रा) अनेक पदार्थों में (ते) तेरे लिये (विष्ठितम्) व्याप्त (जगत्) जगत् की (वन्वताम्) वे [वीर लोग] याचना करें। (दुन्दुभे) हे दुन्दुभि [ढोल] के सदृश गर्जनेवाले वीर ! (सः) सो तू (इन्द्रेण) ऐश्वर्य व बिजुली के अस्त्र समूह से और (देवैः) विजयी वीरों से (सजूः) प्रीति करता हुआ (दूरात्) दूर से (दवीयः) अति दूर (शत्रून्) शत्रुओं को (अपसेध) हटा दे ॥१॥
भावार्थभाषाः - राजा वीरों द्वारा बिजुली आदि के अस्त्र-शस्त्रों से शत्रुओं को हटा कर चक्रवर्ती राज्य करके आकाश और भूमि पर शान्ति करे ॥१॥ मन्त्र १, ३ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−म० ६।४७।२९, ३१, यजु० २९।५५।५७। इन मन्त्रों का अर्थ भगवान् दयानन्द सरस्वती के आधार पर किया गया है ॥