वै॑श्वान॒राय॒ प्रति॑ वेदयामि॒ यद्यृ॒णं सं॑ग॒रो दे॒वता॑सु। स ए॒तान्पाशा॑न्वि॒चृतं॑ वेद॒ सर्वा॒नथ॑ प॒क्वेन॑ स॒ह सं भ॑वेम ॥
पद पाठ
वैश्वानराय । प्रति । वेदयामि । यदि । ऋणम् । सम्ऽगर: । देवतासु । स: । एतान् । पाशान् । विऽचृतम् । वेद । सर्वान् । अथ । पक्वेन । सह । सम् । भवेम ॥११९.२॥
अथर्ववेद » काण्ड:6» सूक्त:119» पर्यायः:0» मन्त्र:2
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
वचन के प्रति पालन का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (वैश्वानराय) सब नरों के हितकारी परमेश्वर से (प्रति) प्रत्यक्ष (वेदयामि) निवेदन करता हूँ कि (देवतासु) विद्वानों के विषय [मेरी ओर से] (यत्) जो (ऋणम्) ऋण और (संगरः) प्रण है। (सः) वह परमेश्वर (एतान्) इन (सर्वान्) सब (पाशान्) फन्दों को (विचृतम्) खोल देना (वेद) जानता है, (अथ) सो (पक्वेन सह) उस पक्के [दृढ़] स्वभाववाले परमेश्वर के साथ (सम् भवेम) हम बने रहें ॥२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर का आश्रय लेकर अपने ऋण और प्रतिज्ञा को पूरा करके सदा परमेश्वर की आज्ञापालन करते रहें ॥२॥
टिप्पणी: २−(वैश्वानराय) सर्वनरहिताय जगदीश्वराय (प्रति) प्रत्यक्षम् (वेदयामि) विज्ञापयामि (यत्) (ऋणम्) (संगरः) प्रणयः (देवतासु) विदुषां विषये (सः) परमेश्वरः (एतान्) (पाशान्) बन्धान् (विचृतम्) अ० ६।११७।१। विचर्तितुं विश्लेषयितुम् (वेद) वेत्ति (सर्वान्) (अथ) अनन्तरम् (पक्वेन) पच पाके, व्यक्तीकारे च−क्त, तस्य वः। दृढस्वभावेन परमात्मना (सह) (संभवेम) संगच्छेमहि ॥