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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
पाप से मुक्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) यदि (विद्वांसः) जानते हुए, (यत्) यदि (अविद्वांसः) न जानते हुए (वयम्) हम ने (एनांसि) पाप कर्म (चकृम) किये हैं। (विश्वे देवाः) हे सब विद्वानो ! (सजोषसः) समान प्रीति युक्त (यूयम्) तुम (नः) हमें (तस्मात्) उस [अपराध] से (मुञ्चत) मुक्त करो ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सब प्रकार के पापों को छोड़ कर सदा उत्तम कर्मों में प्रवृत्त रहें ॥१॥
टिप्पणी: १−(यत्) यदि (विद्वांसः) जानन्तः (यत्) यदि (अविद्वांसः) अजानानाः (एनांसि) अ० २।१०।८। अपराधान् (चकृम) कृतवन्तः (वयम्) (यूयम्) (नः) अस्मान् (तस्मात्) अपराधात् (मुञ्चत) (विश्वे) (देवाः) (सजोषसः) अ० ३।२२।१। समानप्रीतयः ॥