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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
पाप से मुक्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (यजमानाः) यजमान, ईश्वर उपासक वा पदार्थों के संयोग वियोग करनेवाले विज्ञानी लोग (मेदस्वता) चिकने घृत आदि पदार्थवाले (स्रुचा) स्रुवा [चमसे] से (आज्यानि) यज्ञ के साधन, घृत, तेज आदि द्रव्यों को (जुह्वतः) होमते हुए [रहते हैं] ! (विश्वे देवाः) हे सब विद्वानों ! (वः) तुम्हारी (अकामाः) कामना न करनेवाले (शिक्षन्तः) [यज्ञ] करने की इच्छा करते हुए हम लोग (न उप शेकिम) उसे न कर सके ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य वैज्ञानिक विद्वानों के समान विद्वानों का सत्कार करके विज्ञानसिद्ध ईश्वरविद्या और शिल्पविद्या को प्राप्त करें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(मेदस्वता) मेदृ मेधाहिंसनयोः−असुन्। स्निग्धपदार्थयुक्तेन (यजमानाः) ईश्वरोपासकाः। पदार्थ- संयोजकवियोजका विज्ञानिनः (स्रुचा) अ० ५।२७।५। स्रु−चिक्। स्रावयन्ति गमयन्ति हविर्येन तेन। स्रुवेण। यज्ञपात्रेण (आज्यानि) अ ५।८।१। योगक्रियासाधनानि घृततैलादिकानि (जुह्वतः) समर्पयन्तः (अकामाः) कामनारहिताः (विश्वे) सर्वे (वः) युष्माकम् (देवाः) विद्वांसः। अन्यद्यथा−म० २ ॥