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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
बुद्धि और धन की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (याम्) जिस (मेधाम्) धारणावती बुद्धि वा सम्पत्ति को (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले, (मेधाविनः) उत्तम बुद्धि वा सम्पत्तिवाले (ऋषयः) ऋषि लोग (विदुः) जानते हैं। (अग्ने) हे विद्याप्रकाशक परमेश्वर वा आचार्य ! (तया मेधया) उसी धारणावती बुद्धि वा सम्पत्ति से (माम्) मुझको (अद्य) आज (मेधाविनम्) उत्तमबुद्धि वा सम्पत्तिवाला (कृणु) कर ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य परमेश्वर की उपासना और आप्त धर्मज्ञ विद्वानों की सेवा से शुद्ध विज्ञान प्राप्त करके उन्नति करें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−अ० ३२। म० १४ ॥
टिप्पणी: ४−(याम्) (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः (भूतकृतः) भूतमुचितं कर्म कुर्वन्ति ते (मेधाम्) धारणावतीं बुद्धिं सम्पत्तिं वा (मेधाविनः) धीमन्तः, ऐश्वर्यवन्तः (विदुः) साक्षात्कुर्वन्ति (तया) (माम्) उपासकम् (अद्य) अस्मिन् दिने (मेधया) धारणावत्या बुद्ध्या सम्पत्त्या वा (मेधाविनम्) बुद्धिमन्तं धनिनं वा (कृणु) कुरु ॥