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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
बुद्धि और धन की प्राप्ति के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (मेधे) हे धारणावती बुद्धि वा संपत्ति ! (प्रथमा) प्रख्यात (त्वम्) तू (गोभिः) गौओं और (अश्वेभिः) घोड़ों के साथ (नः) हमको (आ गहि) प्राप्त हो। (त्वम्) तू (सूर्यस्य) सूर्य की (रश्मिभिः) फैलनेवाली किरणों के साथ वर्तमान, और (त्वम्) तू (नः) हमारी (यज्ञिया) पूजनीय (असि) है ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सूर्य के समान प्रख्यात स्मरणशील बुद्धि और श्रेष्ठ धन प्राप्त करके सांसारिक और पारमार्थिक व्यवहार सिद्ध करें ॥१॥
टिप्पणी: १−(त्वम्) (नः) अस्मान् (मेधे) मिधृ मेधृ संगमे च, चकारात् हिंसामेधयोश्च−घञ्। मेधा धननाम−निघ० २।१०। मेधावी कस्मान्मेधया तद्वान् भवति मेधा मतौ धीयते−निरु० ३।१९। हे धारणावति बुद्धे हे धन (प्रथमा) प्रख्याता। मुख्या (गोभिः) गवादिपशुभिः (अश्वेभि) अश्वैः। अश्वादिवहनशीलैः (सूर्यस्य) प्रेरकस्य। आदित्यस्य (रश्मिभिः) व्यापनशीलैः। किरणैः (नः) अस्माकम् (असि) वर्तसे (यज्ञिया) यज्ञ−घ। यज्ञार्हा। पूजनीया ॥