बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
रोग नाश करने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (देवाः) जलदाता मेघों ने (विषदूषणम्) विषनाशक ओषध रूप विज्ञान को (अदुः) दिया है, (सूर्यः) सूर्य ने (अदात्) दिया है, (द्यौः) अन्तरिक्ष ने (अदात्) दिया है, (पृथिवी) पृथिवी ने (अदात्) दिया है। (सचित्ताः) समान ज्ञानवाली (तिस्रः) तीनों (सरस्वतीः) विज्ञानवाली देवियों ने (अदुः) दिया है ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य मेघ सूर्य आदि पदार्थों और विद्याओं से यथावत् उपकार लेकर सुख प्राप्त करें ॥१॥ तीन देवियाँ यह हैं [अ० ५।१२।८] १−भारती, पोषण करनेवाली विद्या, २−इडा, स्तुतियोग्य नीति और ३−सरस्वती, विज्ञानवाली बुद्धि ॥
टिप्पणी: १−(देवाः) देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा−निरु० ७।१५। जलप्रदा मेघाः (अदुः) दत्तवन्तः (सूर्यः) आदित्यः (अदात्) दत्तवान् (द्यौः) अन्तरिक्षम् (पृथिवी) भूमिः (तिस्रः) त्रिसंख्याकाः (सरस्वतीः) सरस्वत्यः। विज्ञानवत्यो विद्याः, भारती, इडा, सरस्वतीति−अ० ५।१२।८ (सवित्ताः) समानज्ञानाः (विषदूषणम्) विषनिवारकौषधरूपविज्ञानम् ॥