पदार्थान्वयभाषाः - (शुष्म) हे बलवान् ! (अमुर) हे किसी से न घेरे गये परमेश्वर ! (अर्धम्) बढ़े हुए संसार को (अर्धेन) बढ़े हुए (पयसा) अपने व्यापकपन से (पृणक्षि) तू संयुक्त करता है और उस (अर्धेन) बढ़े हुए [व्यापकपन] से (वर्धसे) तू बढ़ता है। (अविम्) रक्षक, (शग्मियम्) सुखवान्, (सखायम्) सब के मित्र, (वरुणम्) सब में श्रेष्ठ, (पुत्रम्) सब के शुद्ध करने हारे, और (अदित्याः) अखण्ड प्रकृति के (इषिरम्) चलाने वा देखनेवाले परमेश्वर को (वृधाम) हम बड़ा मानें। (कविशस्तानि) बुद्धिमानों से बड़े माने गये (वपूंषि) रूपों को (अस्मै) इस [परमेश्वर] के लिये (अवोचाम) हम ने कथन किया है, (रोदसी) सूर्य और पृथिवी दोनों (सत्यवाचा) सत्य बोलनेवाले हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वर सब संसार में सर्वथा भरपूर है, वही महाबली प्रत्येक परमाणु में संयोग वियोग शक्ति देकर संसार को रचता है। उसकी महिमा सब बुद्धिमान् लोग गाते हैं, जो सूर्य और पृथिवी अर्थात् ऊँचे-नीचे और प्रकाशमान अप्रकाशमान लोकों से प्रकट है ॥९॥