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द्विषो॑ नो विश्वतोमु॒खाति॑ ना॒वेव॑ पारय। अप॑ नः॒ शोशु॑चद॒घम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

द्विष: । न: । विश्वत:ऽमुख । अति । नावाऽइव । पारय । अप । न: । शोशुचत् । अघम् ॥३३.७॥

अथर्ववेद » काण्ड:4» सूक्त:33» पर्यायः:0» मन्त्र:7


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखवाले [मुख के समान, सर्वोपदेशक सर्वोत्तम] परमेश्वर ! (द्विषः) द्वेषियों को (अति=अतीत्य) लाँघ कर (नः) हमें (पारय) पार लगा, (नावा इव) जैसे नाव से [समुद्र को पार करते हैं]। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥७॥
भावार्थभाषाः - जैसे पोत द्वारा समुद्र पार करते हैं, वैसे ही मनुष्य परमेश्वर के आश्रय से सब दोषों को हटा कर सुखी रहें ॥७॥
टिप्पणी: ७−(द्विषः) द्वेष्टॄन् शत्रून् (नः) अस्मान् (विश्वतोमुख) म० ६। (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (नावा इव) यथा नौकया (पारय) पारं गमय। अन्यत्पूर्ववत् ॥