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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सब प्रकार की रक्षा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (विश्वतोमुख) हे सब ओर मुखवाले [मुख के समान, सर्वोपदेशक सर्वोत्तम] परमेश्वर ! (द्विषः) द्वेषियों को (अति=अतीत्य) लाँघ कर (नः) हमें (पारय) पार लगा, (नावा इव) जैसे नाव से [समुद्र को पार करते हैं]। (नः) हमारा (अघम्) पाप (अप शोशुचत्) दूर धुल जावे ॥७॥
भावार्थभाषाः - जैसे पोत द्वारा समुद्र पार करते हैं, वैसे ही मनुष्य परमेश्वर के आश्रय से सब दोषों को हटा कर सुखी रहें ॥७॥
टिप्पणी: ७−(द्विषः) द्वेष्टॄन् शत्रून् (नः) अस्मान् (विश्वतोमुख) म० ६। (अति) अतीत्य। उल्लङ्घ्य (नावा इव) यथा नौकया (पारय) पारं गमय। अन्यत्पूर्ववत् ॥