वांछित मन्त्र चुनें
देवता: इन्द्रः ऋषि: प्रियमेधः छन्द: गायत्री स्वर: सूक्त-९२

अ॒भि प्र गोप॑तिं गि॒रेन्द्र॑मर्च॒ यथा॑ वि॒दे। सू॒नुं स॒त्यस्य॒ सत्प॑तिम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अभि । प्र । गोऽपतिम् । गिरा । इन्द्रम् । अर्च । यथा । विदे ॥ सूनुम् । सत्यस्य । सत्ऽपतिम् ॥९२.१॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:92» पर्यायः:0» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-३ राजा और प्रजा के धर्म का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (गोपतिम्) पृथिवी के पालक, (सत्यस्य) सत्य के (सूनुम्) प्रेरक, (सत्पतिम्) सत्पुरुषों के रक्षक (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] को, (यथा) जैसा (विदे) वह है, (गिरा) स्तुति के साथ (अभि) सब ओर से (प्र) अच्छे प्रकार (अर्च) तू पूज ॥१॥
भावार्थभाषाः - जैसे राजा उत्तम गुणवाला हो, वैसे ही मनुष्यों को उसकी यथार्थ बड़ाई करनी चाहिये ॥१॥
टिप्पणी: मन्त्र १-—१। ऋग्वेद में है-८।६९ [सायणभाष्य ८]। ४-१८। मन्त्र १-३ आचुके हैं- अथर्व० २०।२२।४-६ ॥ १-३ व्याख्याताः-अ० २०।२२।४-६ ॥