दोहे॑न॒ गामुप॑ शिक्षा॒ सखा॑यं॒ प्र बो॑धय जरितर्जा॒रमिन्द्र॑म्। कोशं॒ न पू॒र्णं वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्ट॒मा च्या॑वय मघ॒देया॑य॒ शूर॑म् ॥
पद पाठ
दोहेन । गाम् । उप । शिक्ष । सखायम् । प्र । बोधय । जरित: । जारम् । इन्द्रम् ॥ कोशम् । न । पूर्णम् । वसुना । निऽऋष्टम् । आ । च्यवय । मघऽदेयाय । शूरम् ॥८९.२॥
अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:89» पर्यायः:0» मन्त्र:2
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (जरितः) हे स्तुति करनेवाले विद्वान् ! (दोहेन) दूध दोहने के लिये (गाम्) गाय को [जैसे, वैसे] (जारम्) स्तुतियोग्य (सखायम्) मित्र (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े प्रतापी पुरुष] को (उप शिक्ष) तू ग्रहण कर और (प्र) अच्छे प्रकार (बोधय) जगा (वसुना) धन से (पूर्णम्) भरे हुए (कोशं न) कोश [धनागार] के समान (न्यृष्टम्) निश्चय को प्राप्त हुए (शूरम्) शूर को (मघदेयाय) पूजनीय पदार्थ के दान के लिये (आ च्यवय) आगे बढ़ा ॥२॥
भावार्थभाषाः - जैसे अन्न आदि देकर प्रीति के साथ गाय से दूध लेते हैं, वैसे मनुष्य आदर सत्कार के साथ कर्मवीर पुरुष से पूजनीय व्यवहार की शिक्षा ग्रहण करें ॥२॥
टिप्पणी: २−(दोहेन) दुग्धदोहनार्थम् (गाम्) धेनुम् (उप शिक्ष) शिक्षतिर्दानकर्मा-निघ० ३।२०। उपपूर्वक आदाने। गृहाण (सखायम्) प्रियम् (प्र बोधय) प्रबुद्धं जागृतं कुरु (जरितः) हे स्तोतः (जारम्) जॄ स्तुतौ-घञ्, अर्शआद्यच्। स्तुतियोग्यम् (इन्द्रम्) महाप्रतापिनं पुरुषम् (कोशम्) धनागारम् (न) यथा (पूर्णम्) पूरितम् (वसुना) धनेन (न्यृष्टम्) ऋषी गतौ-क्त। निश्चयगतम् (आ) अभिमुखम् (च्यवय) गमय (मघदेयाय) पूजनीयपदार्थस्य दानाय (शूरम्) वीरम् ॥