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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
७-९ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (शविष्ठ) हे महाबली ! (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] [तेरा] (यः) जो (सोमपातमः) ऐश्वर्य का अत्यन्त रक्षक (मदः) आनन्द (चेतति) चेतानेवाला है, और (येन) जिस [आनन्द] से (अत्त्रिणम्) खाऊ [स्वार्थी दुर्जन] को (नि हंसि) तू मार गिराता है, (तम्) उस [आनन्द] को (ईमहे) हम माँगते हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो परमात्मा स्वार्थी दुष्टों को दण्ड देकर श्रेष्ठों को सुख देता है, उसकी उपासना सदा करनी चाहिये ॥७॥
टिप्पणी: मन्त्र ७-९ ऋग्वेद में है-८।१२।१-३। मन्त्र ७ साम०-पू० ।१।४ ॥ ७−(यः) (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सोमपातमः) ऐश्वर्यस्य रक्षितृतमः (मदः) आनन्दः (शविष्ठ) हे शवस्वितम। बलवत्तम (चेतति) चेतयिता भवति (येन) मदेन (हंसि) नाशयसि (नि) निरन्तरम् (अत्त्रिणम्) अत्तारम्। स्वार्थिनम् (तम्) मदम् (ईमहे) याचामहे ॥