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तम्व॒भि प्र गा॑यत पुरुहू॒तं पु॑रुष्टु॒तम्। इन्द्रं॑ गीर्भिस्तवि॒षमा वि॑वासत ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम् । ऊं इति । अभि । प्र । गायत । पुरुऽहूतम् । पुरुऽस्तुतम् ॥ इन्द्रम् । गीऽभि: । तविषम् । आ । विवासत ॥६२.८॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:62» पर्यायः:0» मन्त्र:8


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [हे विद्वानो !] (तम् उ) उस ही (पुरुहूतम्) बहुत पुकारे हुए, (पुरुष्टुतम्) बहुत बड़ाई किये हुए, (तविषम्) महान् (इन्द्रम्) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] को (अभि) सब ओर से (प्र) भले प्रकार (गायत) गाओ, और (गीर्भिः) वाणियों से (आ) सब प्रकार (विवासत) सत्कार करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! वह परमात्मा सबसे बड़ा है, उसीके गुणों को हृदय में धारण करके आत्मबल बढ़ाओ ॥८॥
टिप्पणी: मन्त्र ८-१० आचुके हैं-अ० २०।६१।४-६ ॥ ८-१०−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।६१।४-६ ॥