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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (ज्योतिषा) अपनी ज्योति से (विभ्राजन्) चमकता हुआ तू (दिवः) सूर्य के, (रोचनम्) चमकानेवाले (स्वः) अपने आनन्दस्वरूप को (अगच्छः) प्राप्त हुआ है, (देवाः) विद्वानों ने (ते) तेरी (सख्याय) मित्रता के लिये (येमिरे) उद्योग किया है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो प्रकाशस्वरूप परमात्मा अपनी महिमा से प्रत्येक वस्तु में चमकता है, उसकी उपासना से हम अपने आत्मा में प्रकाश करें ॥७॥
टिप्पणी: ७−(विभ्राजन्) विविधं प्रकाशमानः (ज्योतिषा) स्वतेजसा (स्वः) स्वकीयं सुखस्वरूपम् (अगच्छः) प्राप्तवानसि (रोचनम्) प्रकाशकम् (दिवः) सूर्यस्य (देवाः) विद्वांसः (ते) तव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (सख्याय) मित्रत्वाय (येमिरे) नियमितवन्तः। उद्यतवन्तः ॥