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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मन्त्र -१० परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (त्वम्) तू (अभिभूः) विजयी (असि) है, (त्वम्) तूने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमक दी है। तू (विश्वकर्मा) विश्वकर्मा [सबका बनानेवाला], (विश्वदेवः) विश्वदेव [सबका पूजनीय] और (महान्) महान् [अति प्रबल] (असि) है ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य उस महाबली परमात्मा की उपासना से अपने आत्मा को बलवान् करें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(त्वम्) (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (अभिभूः) अभिभविता। विजेता (असि) (त्वम्) (सूर्यम्) रविमण्डलम् (अरोचयः) अदीपयः (विश्वकर्मा) सर्वस्य कर्ता (विश्वदेवः) सर्वैः स्तुत्यः (महान्) अतिप्रबलः (असि) ॥