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देवता: इन्द्रः ऋषि: सौभरिः छन्द: प्रगाथः स्वर: सूक्त-६२

यो न॑ इ॒दमि॑दं पु॒रा प्र वस्य॑ आनि॒नाय॒ तमु॑ व स्तुषे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

य: । न: । इदम्ऽइदम् । पुरा । प्र । वस्य: । आऽनिनाय । तम् । ऊं इति । व: । स्तुषे ॥ सखाय: । इन्द्रम् । ऊतये ॥६२.३॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:62» पर्यायः:0» मन्त्र:3


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-४ राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो [पराक्रमी] (नः) हमारे लिये (इदमिदम्) इस-इस (वस्यः) उत्तम वस्तु को (प्र) अच्छे प्रकार (आनिनाय) लाया है, (तम् उ) उस ही (इन्द्रम्) इन्द्र [महाप्रतापी वीर] को, (सखायः) हे मित्रो ! (वः) तुम्हारी (ऊतये) रक्षा के लिये (स्तुषे) मैं सराहता हूँ ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष पहले ही से धीर-वीर होवें, लोग उसकी बड़ाई करके गुण ग्रहण करें ॥३॥
टिप्पणी: १-४−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २०।१४।१-४ ॥