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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (एव) निश्चय करके (हि) ही (अस्य) उस [सभापति] के (काम्या) मनोहर और (शंस्या) प्रशंसनीय (स्तोमः) उत्तम गुण (च) और (उक्थम्) कहने योग्य कर्म (इन्द्राय) ऐश्वर्यवान् पुरुष के लिये (सोमपीतये) तत्त्वरस पीने के निमित्त [हैं] ॥६॥
भावार्थभाषाः - उत्तम गुणी पुरुष को सभापति बनाकर सब मनुष्य ऐश्वर्यवाले और तत्त्वज्ञानवाले होवें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(एव) निश्चयेन (हि) अवधारणे (अस्य) सभापतेः (काम्या) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इति द्विवचनस्य आकारः। कमनीये (स्तोमः) स्तुत्यगुणः (उक्थम्) वक्तव्यं कर्म (च) (शंस्या) पूर्ववद् आकारः। प्रशंसनीये (इन्द्राय) ऐश्वर्यवते पुरुषाय (सोमपीतये) तत्त्वरसपानाय ॥