बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (तुविमघ) हे बहुत धनवाले ! (रातिः) [तेरा] दान (एव) निश्चय करके (विश्वेभिः) सब (धातृभिः) कर्मधारियों करके (धायि) धारण किया गया है, (अध) सो, (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] (मे) मेरे लिये (चित्) भी (सचा) नित्य मेल से [रह] ॥२॥
भावार्थभाषाः - वीर पुरुष बहुत धन को एकत्र करके अपने कर्मकारियों को सदा प्रसन्न रक्खे ॥२॥
टिप्पणी: २−(एव) निश्चयेन (रातिः) दानम् (तुविमघ) हे बहुधनवन् (विश्वेभिः) सर्वैः (धायि) अधायि। धार्यते (धातृभिः) कर्मधारकैः (अध) अनन्तरम् (चित्) एव (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् पुरुष (मे) मह्यम् (सचा) समवायेन वर्तस्वेति शेषः ॥