वांछित मन्त्र चुनें

अ॑र्वा॒वतो॑ न॒ आ ग॒ह्यथो॑ शक्र परा॒वतः॑। उ॑ लो॒को यस्ते॑ अद्रिव॒ इन्द्रे॒ह त॑त॒ आ ग॑हि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अर्वाऽवत: । न: । आ । गहि । अथो इति । शक्र । परावत: ॥ ऊं इति । लोक: । य: । ते । अद्रिऽव: । इन्द्र । इह । तत: । आ । गहि ॥५७.७॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:57» पर्यायः:0» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

१-१० मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (शक्र) हे समर्थ ! (अर्वावतः) समीप से (अथो) और (परावतः) दूर से (नः) हमें (आ गहि) प्राप्त हो, (अद्रिवः) हे वज्रधारी (इन्द्र) इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (उ) और (यः) जो (ते) तेरा (लोकः) स्थान है, (ततः) वहाँ से (इह) यहाँ पर (आ गहि) तू आ ॥७॥
भावार्थभाषाः - राजा अधिकारियों द्वारा समीप और दूर से प्रजा की सुधि रक्खे और उनको आप भी जा कर देखा करे ॥७॥
टिप्पणी: ४-१०- एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० २।२०।१-७ ॥