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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सूर्य वा भूमि के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (पतङ्गः) चलनेवाला वा ऐश्वर्यवाला सूर्य (त्रिंशद् धामा) तीस धामों पर [दिन-रात्रि के तीस मुहूर्तों पर] (वस्तोः, अहः) दिन-दिन (द्युभिः) अपनी किरणों और गतियों के साथ (प्रति) प्रत्यक्ष रूप से (वि) विविध प्रकार (राजति) राज करता वा चमकता है, (वाक्) इस वचन ने [उस सूर्य में] (अशिश्रियत्) आश्रय लिया है ॥६॥
भावार्थभाषाः - यह बात स्वयं सिद्ध है कि यह सूर्य सर्वदा सब ओर चमकता रहकर अपनी परिधि के सब लोकों को गमन, आकर्षण, विकर्षण, वृष्टि, शीत, ताप आदि द्वारा स्थिर रखता है ॥६॥
टिप्पणी: ४-६−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० ६।३१।१-३ ॥