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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (गिरा) वाणी से (संभृतः) पुष्ट किया गया, (सबलः) सबल, (अनपच्युतः) न गिरने योग्य, (ऋष्वः) गतिवाला, और (अस्तृतः) बे-रोक सेनापति (वज्रः न) बिजुली के समान (ववक्षे) रिस होवे ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपनी बात में सच्चा, महाबली हो, वह सेनानी होकर शत्रुओं पर बिजुली के समान क्रोध करे ॥३॥
टिप्पणी: ३−(गिरा) वाण्या (वज्रः) विद्युत् (न) यथा (संभृतः) सम्यक् पोषितः (सबलः) बलसहितः (अनपच्युतः) परैरपरिच्युतः। अनभिगतः (ववक्षे) अ० २०।३।९। लेडर्थे लिट्। रोषं कुर्यात् (ऋष्वः) अशूप्रुषिलटि०। उ० १।११। ऋषी गतौ-क्वन्। गतिमान्। महान्-निघ० ३।३। (अस्तृतः) अहिंसितः। अनिवारितः ॥