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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
१३-२१। परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सूरः) सूर्य [लोकप्रेरक रविमण्डल] ने (रथस्य) रथ [अपने चलने के विधान] की (नप्त्यः) न गिरानेवाली (सप्त) सात [शुक्ल, नील, पीत आदि मन्त्र २०] (शुन्ध्युवः) शुद्ध किरणों को (अयुक्त) जोड़ा है। (ताभिः) उन (स्वयुक्तिभिः) धन से संयोगवाली [किरणों] के साथ (याति) वह चलता है ॥२१॥
भावार्थभाषाः - जो सूर्य अपनी परिधि के लोकों को अपने आकर्षण में रखकर चलाता है और जिसकी किरणें रोगों को हटाकर प्रकाश और वृष्टि आदि से संसार को धनी बनाती हैं, उस सूर्य को जगदीश्वर परमात्मा ने बनाया है ॥२१॥
टिप्पणी: १३-२१−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अ० १३।२।१६-२४ ॥