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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] (ओजसा सह) पराक्रम के साथ (उत्तिष्ठन्) उठते हुए तूने (चमू) चमसे में (सुतम्) सिद्ध किया हुआ (सोमम्) सोम [अन्न आदि महौषधियों का रस] (पीत्वी) पीकर (शिप्रे) दोनों जबड़ों को (अवेपयः) हिलाया है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जैसे प्राणी दाँतों को चलाकर अन्न आदि खा आनन्द पाते हैं, वैसे ही मनुष्य बल पराक्रम करके अभीष्ट फल प्राप्त करें ॥३॥
टिप्पणी: ३−(उत्तिष्ठन्) ऊर्ध्वं गच्छन् (ओजसा) बलेन (सह) (पीत्वी) अ० २०।६।७। पीत्वा (शिप्रे) अ० २०।३१।४। हनू (अवेपयः) अकम्पयः चालितवानसि (सोमम्) अन्नादिमहौषधिरसम् (चमू) सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। सप्तम्याः पूर्वसवर्णः। चम्वाम्। भोजनपात्रे। चमसे (सुतम्) संस्कृतम् ॥