वांछित मन्त्र चुनें

अ॒पामू॒र्मिर्मद॑न्निव॒ स्तोम॑ इन्द्राजिरायते। वि ते॒ मदा॑ अराजिषुः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अपाम् । ऊर्मि: । मदन्ऽइव । स्तोम: । इन्द्र । अजिरयते ॥ वि । ते । मदा: । अराजिषु: ॥३९.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:39» पर्यायः:0» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मन्] (ते) तेरी (स्तोमः) बड़ाई (अपाम्) जलों की (मदन्) हर्ष बढ़ानेवाली (ऊर्मिः इव) लहर के समान (अजिरायते) वेग से चलती है, और (मदः) आनन्द (वि अराजिषुः) विराजते हैं [विविध प्रकार ऐश्वर्य बढ़ाते हैं] ॥॥
भावार्थभाषाः - न्यायकारी परमात्मा की उत्तम नीति को मानकर सब लोग आनन्द पाकर शीघ्र ऐश्वर्य बढ़ावें ॥॥
टिप्पणी: −मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२–०।२८।१-४॥