वांछित मन्त्र चुनें

व्यन्तरि॑क्षमतिर॒न्मदे॒ सोम॑स्य रोच॒ना। इन्द्रो॒ यदभि॑नद्व॒लम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि । अन्तरिक्षम् । अतिरत् । मदे । सोमस्य । रोचना ॥ इन्द्र: । यत् । अभिनत् । वलम् ॥३९.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:39» पर्यायः:0» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

परमेश्वर की उपासना का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले परमात्मा] ने (सोमस्य) ऐश्वर्य के (मदे) आनन्द में (रोचना) प्रीति के साथ (अन्तरिक्षम्) आकाश को (वि अतिरत्) पार किया है, (यत्) जब कि उसने (वलम्) हिंसक [विघ्न] को (अभिनत्) तोड़ डाला ॥२॥
भावार्थभाषाः - सबसे महान् और पूजनीय परमात्मा की उपासना से सब मनुष्य उन्नति करें ॥२॥
टिप्पणी: मन्त्र २- आचुके हैं-अ०२०।२८।१-४॥२−मन्त्राः २- व्याख्याताः-अ०२–०।२८।१-४॥