बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (सोमपाम्) ऐश्वर्य के रक्षक (त्वा) तुझको (युजा) मित्रता के साथ (ब्रह्माणः) वेद जाननेवाले, (सोमिनः) ऐश्वर्यवाले, (सुतवन्तः) उत्तम पुत्र आदि सन्तानोंवाले (वयम्) हम (हवामहे) बुलाते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जिस राजा के सुप्रबन्ध से प्रजागण ज्ञानवान् धनवान् और सुशिक्षित सन्तानवाले होवें, उसको मित्र जानकर सदा स्मरण करें ॥३॥
टिप्पणी: ३−मन्त्राः १-३ व्याख्याताः-अ०२०।३।१-३॥