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देवता: अश्विनौ ऋषि: शशकर्णः छन्द: गायत्री स्वर: सूक्त १४२

प्र द्यु॒म्नाय॒ प्र शव॑से॒ प्र नृ॒षाह्या॑य॒ शर्म॑णे। प्र दक्षा॑य प्रचेतसा ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र । द्युम्नाय । प्र । शवसे । प्र । नृऽसह्याय । शर्मणे ॥ प्र । दक्षाय । प्रऽचेतसा ॥१४२.५॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:142» पर्यायः:0» मन्त्र:5


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

दिन और राति के उत्तम प्रयोग का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - [तब] (प्रचेतसा) हे उत्तम ज्ञान देनेवाले ! तुम दोनों (द्युम्नाय) चमकते हुए यश के लिये (प्र=प्रभवथः) समर्थ होते हो, (शवसे) बल के लिये (प्र) समर्थ होते हो, (नृषह्याय) मनुष्यों को सहाय देनेवाले (शर्मणे) शरण [घर आदि] के लिये (प्र) समर्थ होते हो, और (दक्षाय) चतुराई [कार्यकुशलता] के लिये (प्र) समर्थ होते हो ॥॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य दिन-राति तत्त्व का ग्रहण करके यशस्वी, बलवान् और कार्यकुशल होवें ॥४-६॥
टिप्पणी: −(प्र) प्रभवथः। समर्थौ भवथः (द्युम्नाय) द्योतमानाय यशसे (प्र) प्रभवथः (शवसे) बलाय (प्र) प्रभवथः (नृषह्याय) शकिसहोश्च। पा० ३।१।९९। षह क्षमायां-यत्, सहितायां दीर्घः। नॄणां सहायाय (शर्मणे) गृहाय। शरणाय (प्र) प्रभवथः (दक्षाय) दक्षत्वाय। कार्यकुशलत्वाय (प्रचतसा) हे प्रकृष्टज्ञानप्रदौ ॥