बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
दिन और रात्रि के उत्तम प्रयोग का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (नासत्या) हे सदा सत्य स्वभाववाले दोनों ! [दिन-राति] (अद्य) आज [यत्] जैसे (उक्थैः) कहने योग्य शास्त्रों से, (वा) अथवा (यत्) जैसे (वाणीभिः) अपनी वाणियों से (वाम्) तुम दोनों को (आचुच्युवीमहि) हम लावें, (अश्विना) हे दोनों अश्वी ! [व्यापक दिन-राति] (एव इत्) वैसे ही (काण्वस्य) बुद्धिमान् के किये कर्म का (बोधतम्) तुम दोनों ज्ञान करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य शीघ्र शास्त्रों में प्रवीण होकर अपने वचन के पक्के होवें और प्राप्त अवसर का यथावत् प्रयोग करें ॥४॥
टिप्पणी: ४−(यत्) यथा (अद्य) अस्मिन् दिने (वाम्) युवाम् (नासत्या) म० १। हे सदा सत्यस्वभावौ (उक्थैः) कथनीयशास्त्रैः (आचुच्युवीमहि) आगमयेम (यत्) यथा (वा) अथवा (वाणीभिः) वाग्भिः (अश्विना) म० २। हे व्यापकौ। अहोरात्रौ। अन्यद् गतम्-१३९।३ ॥