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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सहस्रधारः) सहस्रों धाराओंवाला (समुद्रः) समुद्र [जैसे], (वाचमीङ्खयः) विद्याओं का प्रवर्त्तक, (रयीणाम्) धनों का (पतिः) स्वामी, (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] का (सखा) मित्र (सोमः) सोम [तत्त्व रस] (दिवेदिवे) दिन-दिन (पवते) शुद्ध होता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्याओं द्वारा पदार्थों का तत्त्व जानकर दिन-दिन नवीन-नवीन आविष्कार करके धन की वृद्धि करें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(सहस्रधारः) बहुधाराभिर्युक्तः (पवते) शुध्यति (समुद्रः) जलधिर्यथा (वाचमीड्खयः) ईखि गतौ, ण्यन्तस्य सुप्युपपदे खश्प्रत्ययः। वाचां विद्यानां प्रवर्त्तकः (सोमः) तत्त्वरसः (पतिः) स्वामी (रयीणाम्) धनानाम् (सखा) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतः पुरुषस्य (दिवेदिवे) दिने दिने ॥