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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दुः) सोम [तत्त्व रस] (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] के लिये (पवते) शुद्ध होता है, (वाचः पतिः) वेदवाणी का स्वामी [परमात्मा] (ओजसा) अपने सामर्थ्य से (विश्वस्य) सबका (ईशानः) राजा होकर (मखस्यते) पुरुषार्थ चाहता है−(इति) ऐसा (देवासः) विद्वानों ने (अब्रुवन्) कहा है ॥॥
भावार्थभाषाः - विद्वानों का निश्चय है कि परमात्मा पुरुषार्थियों को तत्त्वज्ञान देकर ऐश्वर्यवान् करता है ॥॥
टिप्पणी: −(इन्दुः) सोमः। तत्त्वरसः (इन्द्राय) परमैश्वर्यवते पुरुषाय (पवते) शुष्यति (इति) एवम् (देवासः) विद्वांसः (अब्रुवन्) अकथयन् (वाचः) वेदवाण्याः (पतिः) स्वामी परमात्मा (मखस्यते) मख गतौ, लालसायां सुगागमः। गतिं पुरुषार्थमिच्छति (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशानः) राजा (ओजसा) सामर्थ्येन ॥