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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (भद्रः) मङ्गलदाता (महान्) महान् पुरुष (वै) ही (बिल्वः) बेल [वृक्ष के समान उपकारी] है, (भद्रः) मङ्गलदाता (महान्) महान् पुरुष (उदुम्बरः) गूलर [वृक्ष के समान उपकारी] है। (अभिक्त) हे विख्यात ! (महान्) महान् पुरुष (महतः) बड़े [आत्मिक और सामाजिक बलों-म० १४] से (खोदनम्) खोदने के कर्म [सैंध सुरंग आदि] को (साधु) भले प्रकार (बाधते) हटाता है ॥१॥
भावार्थभाषाः - सब महान् पुरुष प्रयत्न करके प्रजा को दुष्टों से बचावें ॥१॥
टिप्पणी: १−(महान्) (वै) एव (भद्रः) मङ्गलप्रदः (बिल्वः) उल्वादयश्च। उ० ४।९। बिल भेदने−वन्। फलवृक्षविशेषः। शिवद्रुमः (महान्) (भद्रः) (उदुम्बरः) पॄभिदिव्यधि०। उ० १।२३। उडु संहतौ सौत्रो धातुः−कु। संज्ञायां भृतॄवृ०। पा० ३।२।४६। उडु+वृञ् वरणे−खच्, मुम् च, डस्य दः, वस्य बः। वृक्षविशेषः। जन्तुफलः। यज्ञीयः (महान्) (अभिक्त) अभि+अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु-क्त, अकारलोपः। अभ्यक्त। हे विख्यात (बाधते) निवारयति। अन्यद् यथा म० १२ ॥