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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
बुद्धि बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (इह) यहाँ (इत्थ) इस प्रकार ........... [म० १]−(लाहणि) प्रेरक बुद्धि (लीशाथी) चलती हुई (आष्टे) फैलती हुई ॥॥
भावार्थभाषाः - सब विद्वान् अपनी बुद्धि को सब ओर चलाकर संसार में विचरें ॥॥
टिप्पणी: −(आष्टे) अशू व्याप्तौ। व्याप्यते (लाहणि) अर्त्तिसृधृ०। उ० २।१०२। लाभ प्रेरणे−अनि, भस्य हः। विभक्तेर्लुक्। प्रेरिका शक्तिः। तीक्ष्णा बुद्धिः (लीशाथी) रुवदिभ्यां डित्। उ० ३।११। लिश गतौ, अल्पीभावे च−अथ प्रत्ययः, ङीप्, पृषोदरादिरूपम्। गमनशीला सती ॥