वांछित मन्त्र चुनें
देवता: कुमारी ऋषि: NA छन्द: अनुष्टुप् स्वर: कुन्ताप सूक्त

अव॑श्लक्ष्ण॒मिव॑ भ्रंशद॒न्तर्लो॑म॒मति॑ ह्र॒दे। न वै॑ कुमारि॒ तत्तथा॒ यथा॑ कुमारि॒ मन्य॑से ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अवश्लक्ष्णम् । इव । भ्रंशदन्तर्लोममति । हृदे ॥ न । वै । कुमारि । तत् । तथा । यथा । कुमारि । मन्यसे ॥१३३.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:133» पर्यायः:0» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

स्त्रियों के कर्तव्य का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (भ्रंशदन्तर्लोममति) भीतर पड़े हुए केश आदि पदार्थवाले (ह्रदे) जलाशय में (अवश्लक्ष्णम् इव) जैसे गँदला रूप [दीखता है]। (कुमारि) हे कुमारी ! [कामनायोग्य स्त्री] (वै) निश्चय करके (तत्) वह (तथा) वैसा (न) नहीं है, (कुमारि) हे कुमारी (यथा) जैसा (मन्यसे) तू मानती है ॥६॥
भावार्थभाषाः - गँदले पानी में गँदला रूप दीखता है, और शुद्ध में शुद्ध, वैसे ही स्त्री आदि सब लोग मानसिक मैल तज कर शुद्ध व्यवहार करें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(अवश्लक्ष्णम्) म० । अव अनादरे, परिभवे च। अमनोहरत्त्वम्। मलिनरूपत्वम्, (इव) यथा (भ्रंशदन्तर्लोममति) भ्रंशु अधःपतने-शतृ+अन्तः+लोप-मतुप्। अधःपतितमध्यकेशादिपदार्थयुक्ते। अतिमलिनवस्तूपेते (ह्रदे) जलाशये। अन्यत्-म० १ ॥