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न व॑निष॒दना॑ततम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न । वनिषत् । अनाततम् ॥१३२.७॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:132» पर्यायः:0» मन्त्र:7


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

परमात्मा के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अनाततम्) बिना फैले हुए पदार्थ को (न वनिषत्) वह न माँगे ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा ने यह सब बड़े लोक बनाये हैं। मनुष्य अपने हृदय को सदा बढ़ाता जावे, कभी संकुचित न करे ॥-७॥
टिप्पणी: ७−(न) निषेधे (वनिषत्) म० ६। याचतां सः (अनाततम्) अविस्तृतम्। सङ्कुचितं पदार्थम् ॥