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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
परमात्मा के गुणों का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ द्वे वा॒ यशः॒ शवः॑ ॥१॥ (एकम्) एक (हिरण्यम्) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वे) दो (यशः) यश [कीर्ति] तथा (शवः) बल है, (इति) ऐसा (अब्रवीत्) [वह, मनुष्य] कहता है ॥१४, १॥१−(द्वौ) (वा) समुच्चये (ये) (शिशवः) वासाः। बालसमानस्वबुद्धयः। (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्डश्च वाहनश्च। [नीलशिखण्डः-अथ० २।२७।६] स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। णीञ् प्रापणे-रक्, रस्य लः। यद्वा नि+इल अतौ-कः। अण्डन् कृसृभृवृञः। उ० १।२९। शिखि गतौ-अण्डन् कित्। नीलानां निधीनां यद्वा नीलानां नीडानां निवासानां शिखण्डः प्रापकः [वाहनः] वह प्रापणे-ल्यु स च णित्। वोढा। सर्ववहनशीलः परमेश्वरः ॥