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हि॑र॒ण्य इत्येके॑ अब्रवीत् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हिरण्य: । इति । एके । अब्रवीत् ॥१३२.१४॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:132» पर्यायः:0» मन्त्र:14


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

परमात्मा के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (हिरण्यः) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वौ) दो (नीलशिखण्डवाहनः) नीलशिखण्ड [नीलों निधियों वा निवास स्थानों का पहुँचानेवाला] तथा वाहन [सब का लेचलनेवाला] है, (इति) ऐसा (ये शिशवः) बालक हैं, (एके) वे कोई-कोई (अब्रवीत्) कहते हैं ॥१४-१६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ हिर॑ण्य॒मित्येक॑मब्रवीत् ॥१४॥ (एकम्) एक (हिरण्यम्) हिरण्य [तेजोमय], (वा) और (द्वे) दो (यशः) यश [कीर्ति] तथा (शवः) बल है, (इति) ऐसा (अब्रवीत्) [वह, मनुष्य] कहता है ॥१४, १॥१४−(हिरण्यः) हिरण्यः=हिरण्यमयः-निरु० १०।२३। तेजोमयः (इति) एवम् (एके) केचित्। (अब्रवीत्) लडर्थे लङ्, बहुवचनस्यैकवचनम् अब्रुवन्। ब्रुवन्ति ॥