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देवता: प्रजापतिः ऋषि: NA छन्द: दैवी जगती स्वर: कुन्ताप सूक्त

त्रीण्यु॒ष्ट्रस्य॒ नामा॑नि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्रीणि । उष्ट्रस्य । नामानि ॥१३२.१३॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:132» पर्यायः:0» मन्त्र:13


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

परमात्मा के गुणों का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम ॥१३॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अपने अनन्त गुण, कर्म, स्वभाव के कारण नामों की गणना में नहीं आ सकता है, जो मनुष्य उसके केवलहिरण्य आदि नाम बताते हैं, वे बालक के समान थोड़ी बुद्धिवाले हैं ॥१३-१६॥
टिप्पणी: पण्डित सेवकलाल कृष्णदास संशोधित पुस्तक में मन्त्र १३-१६ का पाठ इस प्रकार है ॥ त्रीण्युष्ट्र॑स्य॒ नामा॑नि ॥१३–॥ (उष्ट्रस्य) प्रतापी [परमात्मा] के (त्रीणि) तीन (नामानि) नाम हैं ॥१३॥१३−(त्रीणि) त्रिसंख्याकानि (उष्ट्रस्य) उषिखनिभ्यां कित्। उ० ४।१६२। उष दाहे वधे च-ष्ट्रन् कित्। प्रतापिनः परमेश्वरस्य (नामानि) संज्ञाः ॥