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वनि॑ष्ठा॒ नाव॑ गृ॒ह्यन्ति॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वनिष्ठा: ॥ न । अव । गृह्यन्‍त‍ि ॥१३१.९॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:131» पर्यायः:0» मन्त्र:9


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (वनिष्ठाः) अत्यन्त उपकारी लोग (न) नहीं (अव गृह्यन्ति) रुकते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी: ९−(वनिष्ठाः) वनितृ-इष्ठन्, तृचो लोपः। वनितृतमाः। उपकारितमाः (न) निषेधे (अव गृह्यन्ति) अवग्रहं प्रतिरोधं प्राप्नुवन्ति ॥