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व्याप॒ पूरु॑षः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व्याप । पूरुष: ॥१३१.१७॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:131» पर्यायः:0» मन्त्र:17


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अत्यर्धर्च) हे अत्यन्त बढ़ी हुई स्तुतिवाले ! (पूरुषः) इस पुरुष ने (अदूहमित्याम्) अनष्ट ज्ञान के बीच (परस्वतः) पालन सामर्थ्यवाले [मनुष्य] के (पूषकम्) बढ़ती करनेवाले व्यवहार को (व्याप) फैलाया है ॥१७-१९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्या आदि की प्राप्ति से संसार का उपकार करके अपनी कीर्ति फैलावे, जैसे लोहार धौंकनी की खालों को वायु से फुलाकर फैलाता है ॥१७-२०॥
टिप्पणी: १७−(व्याप) व्यापितवान्। विस्तारितवान् (पूरुषः) अयं मनुष्यः ॥