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अश्व॑त्थ॒ खदि॑रो ध॒वः ॥

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पद पाठ

अश्वत्थ । खदिर: । धव: ॥१३१.१४॥

अथर्ववेद » काण्ड:20» सूक्त:131» पर्यायः:0» मन्त्र:14


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अश्वत्थ) हे अश्वत्थामा ! [बलवानों में ठहरनेवाले वीर] (खदिरः) दृढ़चित्तवाला (धवः) मनुष्य [होवे] ॥१४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य उचित रीति से भोजन आदि का उपहार वा दान और कर आदि का ग्रहण करके दृढ़चित्त होकर शत्रुओं का नाश करे ॥१२-१६॥
टिप्पणी: १४−(अश्वत्थ) अथ० ३।६।१। अश्व+ष्ठा गतिनिवृत्तौ-क, पृषोदरादिरूपम्। अश्वेषु बलवत्सु स्थितिशील। अश्वत्थामन् वीर (खदिरः) अथ० ३।६।१। खद स्थैर्यहिंसयोः-किरच्। स्थिरचित्तः (धवः) अथ० ।।। धावु गतिशुद्ध्योः-पचाद्यच्, ह्रस्वः। धव इति मनुष्यनाम तद्वियोगाद्विधवा-निरु० ३।१। शुद्धः। मनुष्यः ॥