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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ते) वे (वृक्षाः) स्वीकार करने योग्य पुरुष (सह) मिलकर (तिष्ठति) रहते हैं ॥११॥
भावार्थभाषाः - सब मनुष्य और स्त्रियाँ सदा उपकार करके क्लेशों से बचें और परस्पर प्रीति से रहें ॥६-११॥
टिप्पणी: ११−(ते) पूर्वोक्ताः (वृक्षाः) वृक्ष वरणे-क। स्वीकरणीयाः पुरुषाः (सह) एकीभूय (तिष्ठति) तिष्ठन्ति। वर्तन्ते ॥